~ श्री विश्वकर्मा मंदिर बारवा का संक्षिप्त इतिहास एवं परिचय ~

श्री विश्वकर्मा मन्दिर बारवा वंश सुथार समाज द्वारा निर्मित एवं प्रतिष्ठित पाली, जालोर, सिरोही एवं राजसमन्द जिलों का प्रथम एवं प्राचीन मन्दिर है, प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मन्दिर का निर्माण लगभग 200 वर्ष पूर्व हुआ था। कहते है कि इस मन्दिर का निर्माण प्रसिद्ध जगतगुरु शंकराचार्य महाराज द्वारिका मठ के प्रोत्साहन एवं उनके निर्देशानुसार करवाया गया था। इस मन्दिर का भूमि पूजन भी द्वारिका मठ के तात्कालिक जगतगुरु शंकराचार्य महाराज के कर कमलों द्वारा किया गया था। इस मन्दिर के निर्माण से पहले वंश सुथार समाज का विश्वकर्मा प्रभु का इस क्षेत्र में कोई भी मन्दिर नहीं था। तब ग्राम बारवा की सरहद में, बारवा ग्राम के स्वजाति बन्धुओं के प्रयासों से इस प्राचीन मन्दिर हेतु भूमि का आवंटन करवाया गया था। निर्माण एवं बाद के कई वर्षों तक वंश सुथार समाज की तेरह पट्टियों का यहीं एक मात्र श्री विश्वकर्मा प्रभु का मन्दिर था।

यह प्राचीन मन्दिर जहाँ स्थित है, उस स्थान पर अन्य जाति समाजों के कई मन्दिर एवं धर्मशालाएं बनी हुई है। यह स्थान देव भूमि श्री लक्ष्मी नारायणजी के नाम से सुप्रसिद्ध है। यहाँ विशाल नव निर्मित प्रभु श्री लक्ष्मी नारायणजी का मन्दिर भी स्थापित है। जिसकों प्राचीन मन्दिर का जिर्णोद्धार कर नव निर्मित कराया गया है।

श्री विश्वकर्मा प्रभु मन्दिर के पास ही एक प्राचीन धर्मशाला तथा एक नव निर्मित धर्मशाला एवं एक विशाल भोजनशाला और सभा भवन बने हुए है। जिनका संचालन वंश सुधार समाज के गोड़वाड़ प‌ट्टा एवं मालवा ( मध्य प्रदेश) क्षेत्र के 115 गांवों के 4 हजार परिवारों के समाज बन्धुओं द्वारा किया जाता है। इसके लिए श्री विश्वकर्मा वंश सुथार सेवा संस्थान बारवा के नाम से रजिस्टर्ड संस्था बनी हुई है।

उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार प्रभु श्री विश्वकर्मा मन्दिर बारवा की प्रथम प्रतिष्ठा विक्रम संवत 1932 फाल्गुन सुदी तृतीया सोमवार को हुई थी।

बाद में इस मन्दिर जी का पुनः जीर्णोद्धार कर द्वितीय (दूसरी) प्रतिष्ठा विक्रम संवत् 1968 फाल्गुन सुदी तृतीया बुधवार शक संवत् 1633 को हुई थी।

वर्तमान में निर्मित इस मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार करवाकर तृतीय प्रतिष्ठा विक्रम संवत 2032 वैशाख सुदी तेरस शुक्रवार दिनांक 23.05.1975 को हुआ था।

वर्तमान में निर्मित इस मन्दिर में त्रिशिखा गर्भगृह बनाकर इसके गर्भगृह के सामने एक विशाल गुम्बद में प्रार्थना गृह का निर्माण करवाया गया है। मुख्य गर्भ गृह के मध्य में प्रभु श्री विश्वकर्मा की मूर्ति स्थापित है, बायी ओर गर्भ गृह में प्रभु श्री चारभुजाजी एवं दाहिनी ओर गर्भ गृह में प्रभु श्री विश्वकर्मा जी की प्राचीन मूर्ति और कर्माजी की मूर्ति स्थापित है। इसी मन्दिर के प्रांगण में दो देवालय भी बनाये गये है, जिसमें बायी ओर परमपिता ब्रह्माजी एवं सावित्री माँ की मूर्तियाँ स्थापित है। जबकी दायी और बने देवालय में प्रभु श्री शिवजी एवं पार्वती माँ तथा अंजनी पुत्र प्रभु श्री हनुमानजी की मूर्तियाँ स्थापित है